दुनिया की सुपर पावर कहे जाने वाले अमेरिका की सेना दुनिया के हर महाद्वीप में मौजूद है. अमेरिका हर तरफ फैले अपने सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल दुनिया में कहीं भी बैठे दुश्मनों से निपटने और सहयोगियों की मदद करने के लिए करता है. हाल के सालों में अमेरिका ने मिडिल ईस्ट के साथ-साथ साऊथ एशिया में भी अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाई है. इस समय अमेरिका के 80 देशों में करीब 750 सैन्य अड्डे हैं, इन देशों में सबसे ज्यादा 120 मिलिट्री बेस जपान में हैं.
मिडिल ईस्ट में बढ़े तनाव में अमेरिका के ये मिलिट्री बेस अहम भूमिका निभा रहे हैं और इजराइल की सुरक्षा के लिए कवच बने हुए हैं. अमेरिका ने पूरे मिडिल ईस्ट में मिलिट्री बेस का ऐसा जाल बिछा लिया है कि चाह कर भी अरब देश इस जाल को नहीं तोड़ पा रहे हैं. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की अपनी स्पीच में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी कह चुके हैं कि ईरान का कोना-कोना, यहां तक कि पूरा मिडिल ईस्ट हमारी रीच में है.
मिडिल ईस्ट के लगभग 19 देशों में अमेरिका के मिलिट्री बेस हैं, जिनमें से प्रमुख कतर, बहरीन, जॉर्डन, और सऊदी अरब में हैं.
इसके अलावा अमेरिका के सैन्य अड्डे तुर्की और जिबूती में भी हैं, ये देश पूरी तरह मिडिल ईस्ट में तो नहीं आते पर समुद्री और कई रणनीतिक तौर इन देशों में सेना रखने से मिडिल ईस्ट में नजर रखी जाती है. बेंजामिन नेतन्याहू ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में कहा था कि ईरान में ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां हमारे हथियार न पहुंच सके. इजराइली पीएम के इस बयान से लगता है कि उन्होंने ये बयान अमेरिकी सैन्य अड्डों पर भरोसा कर दिया है.
खाड़ी देशों में अमेरिका के सैन्य अड्डों की शुरुआत 1940 के दशक में हुई थी. जब दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने ब्रिटेन से मिलकर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का निर्णय लिया.
हालांकि, अमेरिका ने 1951 में पहला स्थाई बेस रियाद (सऊदी अरब) में स्थापित किया. इस बेस की स्थापना कोरिया युद्ध के बाद हुई थी और आज तक ये अमेरिका और सऊदी अरब के बीच गहरे सैन्य और राजनीतिक रिश्तों का प्रतीक बना हुआ है. आज के समय में सऊदी में अमेरिका के प्रमुख बेसों नें अल-उदीद एयर बेस और प्रिंस सुल्तान एयर बेस शामिल हैं.
क्यों अमेरिका ने बनाए मिडिल ईस्ट में सैन्य अड्डे?
जानकार मानते हैं कि हर कदम के पीछे कही न कही आर्थिक कारण छिपे होते हैं. मिडिल ईस्ट में अमेरिका का सेना को रखना भी उसको एक बड़ा आर्थिक और सुरक्षा लाभ देता है.
तेल रिजर्व- मिडिल ईस्ट दुनिया के सबसे बड़े तेल भंडारों वाला क्षेत्र है. अमेरिका के साथ-साथ सभी देशों के लिए तेल एक खास ऊर्जा स्रोत है. इस क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी के जरिए अमेरिका अपने तेल हितों को सुरक्षित रखने की कोशिश करता है.
इजराइल का समर्थन- मिडिल ईस्ट में इजराइल अमेरिका का खास अलाय है और दोनों के मजबूत राजनीतिक और सैन्य संबंध हैं. इजराइल चारों तरफ से मुस्लिम देशों से घिरा एक यहूदी देश है और फिलिस्तीनियों की जमीन पर कब्जे के कारण, ये देश इजराइल से उलझते रहे हैं.
आतंकवाद और ईरान का बढ़ता प्रभाव- अमेरिकी सेना का मजबूती के साथ मिडिल ईस्ट के देशों में बने रहने का एक बड़ा कारण ईरान और क्षेत्रीय मिलिशिया भी हैं जो कट्टर इस्लामी राज को मिडिल ईस्ट में स्थापित करना चाहती हैं. ईरान की शिया विचारधारा को सुन्नी देश अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानते हैं और ईरान से सुरक्षा के लिए अमेरिका से मदद की उम्मीद रखते हैं.
अमेरिका भी ईरान को अपने लिए एक बड़ा खतरा मानता है, क्योंकि 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद ईरान ने अमेरिकी लाइन को मानने से इंकार किया है और खुदकों क्षेत्र में एक बड़ी ताकत के रूप में पेश किया है.
अमेरिका को सैन्य अड्डों के लिए क्यों दी अरब देशों ने जमीन?
ज्यादातर अरब देश अमेरिका की सेना की उपस्थिति को अपने देश की स्थिरता के लिए जरूरी मानते हैं. अमेरिका अपना सैन्य बेस बनाने के बदले उन देशों को बाहरी खतरों से सुरक्षा की गारंटी और अंतरराष्ट्रीय स्थर पर कई राणनीतिक लाभ देता है. साथ ही गरीब देशों को भारी सैन्य और आर्थिक मदद भी दी जाती है.
शीत युद्ध की विरासत- सालों चले शीत युद्ध के दौरान कई अरब देश USSR के प्रभाव से बचने के लिए अमेरिका के साथ आए थे. यह साथ शीत युद्ध के बाद भी जारी है. इसके अलावा ईरान के बढ़ते खतरों की वजह से भी सऊदी, UAE अमेरिकी सेना पर निर्भरता दिखा रहे हैं.
सैन्य अड्डों का इजराइल को मिल रहा बड़ा लाभ
मिडिल ईस्ट के चारों तरफ इतनी बड़ी तदाद में सैन्य अड्डे होने से इजराइल को बड़ा लाभ मिल रहा है. गाजा लेबनान में अमानवीय कार्रवाई के बावजूद कोई देश भी उसपर सैन्य कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. यहां तक कि ईरान भी अभी तक धमकी ही दे पाया है, लेकिन वे सीधे तौर पर इस जंग में कूदने का साहस नहीं ला पाया है.
जहां कतर में अल-उदीद एयर बेस अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य बेस है, तो बहरीन में अमेरिका का पांचवां समुद्री बेड़ा तैनात है. जोकि ईरान पर चैक रखने और किसी भी वक्त चौतरफा हमला बोलने के लिए काफी है. वहीं जिबूती में अमेरिका के बेस गल्फ ऑफ आदेन और लाल सागर में हूतियों के खिलाफ कार्रवाई करने और उनकी मिसाइलों को नष्ट करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.
वहीं इजराइल को हिजबुल्लाह और इराक के मिलिशिया से बचाने और उनके ठिकानों पर हमला करना के लिए अमेरिका के जॉर्डन, सीरिया और इराक में भी बेस मौजूद हैं. अरब देशों को सुरक्षा का बहाना देके अमेरिका ने पूरे मिडिल ईस्ट को इस तरह घेरा है कि कोई देश चाहकर भी इजराइल का कुछ बिगाड़ नहीं पा रहा है.
अरब देशों में राजनीति का मुद्दा बन रहे अमेरिकी बेस
इन सैन्य अड्डों की उपस्थिति स्थानीय राजनीति में भी एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है. ऐसे कई अरब देश हैं, जहां की जनता के बीच अमेरिका खिलाफ बढ़ती भावनाएं और चिंता वहां की सरकारों के लिए सिरदर्द बनी हुई है. वे सरकारों पर उनकी वापसी का दबाव बना रहे हैं, इराक और जार्डन में तो इसके खिलाफ कई प्रदर्शन भी देखे गए हैं. इन सबके बावजूद अमेरिका मिडिल ईस्ट अपनी सैन्य उपस्थिति और क्षेत्र में अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत बनाए हुए हैं और अपने लक्ष्यों को पूरा कर रहा है.