नई दिल्ली : आजादी की लंबी लड़ाई और अनगिनत बलिदानों के बाद भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था. इस गुलामी की असली इबारत उसी दिन रख दी गई थी, जब मुगल बादशाह हुमायूं ने अंग्रेजों को देश में व्यापार करने की इजाजत दी थी. इसके बाद धीरे-धीरे अंग्रेज देश भर में अपना वर्चस्व बढ़ाने लगे. हालांकि, इसी बीच 1857 की क्रांति से उनको तगड़ा झटका लगा. इससे उबरने के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा करने की ठानी और तीन महीने तक घेरा डाले रखा. गोला-बारूद इंग्लैंड से मंगाया गया था. जैसे ही ये पहुंचा, कंपनी की जीत आसान हो गई.
आखिरकार 20 सितंबर 1857 को अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर उनकी आंखों के सामने ही तीन बेटों को गोलियों से भून दिया. इसके साथ ही देश गुलामी की जंजीरों में पूरी तरह से जकड़ गया. आइए जानते हैं इसी घटना का पूरा किस्सा.
मुगल बादशाह की अगुवाई में लड़ी गई स्वाधीनता की पहली लड़ाई
ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ मई 1857 में भारतीयों ने आजादी की पहली लड़ाई शुरू की थी. तब दिल्ली पर अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का शासन था. उर्दू के जाने-माने शायर बहादुर शाह की अगुवाई में ही पहला स्वाधीनता संग्राम हुआ था. इससे अंग्रेज येन-केन प्रकारेण निपटे और आखिर में मुगल बादशाह को नेस्तनाबूद करने की ठान ली.
आठ जून 1857 को दिल्ली को घेरा
मुगल बादशाह के दमन के लिए अंग्रेजों ने इंग्लैंड से गोला-बारूद मंगाया और पुरानी दिल्ली को आठ जून 1857 को घेर लिया. तीन महीने तक घेराबंदी जारी रखी और 14 सितंबर को अंग्रेजों की सेना ने दिल्ली जीत ली. तब बहादुर शाह जफर लाल किले में मौजूद थे और किसी भी हालत में समर्पण करने के लिए तैयार नहीं थे. आखिरकार 17 सितंबर को उन्होंने पूरे परिवार के साथ लाल किले को छोड़ कर अजमेरी गेट होते हुए पुराने किले में जाने का फैसला किया. फिर अंग्रेजों को 20 सितंबर को खुफिया सूत्रों के जरिए जानकारी मिल गई कि बादशाह पुराना छोड़ कर हुमायूं के मकबरे में पहुंच गए हैं.
विलियम हडसन ने हुमायूं के मकबरे पर डेरा डाला
बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अब तक दिल्ली के खिलाफ अंग्रेज सेना की अगुवाई कर रहे कैप्टन विलियम हडसन ने लगभग सौ सैनिकों को साथ लिया और बादशाह को पकड़ने चल दिए. हडसन को इस बात का अंदेशा था कि हुमायूं के मकबरे पर मौजूद बादशाह के लोग और क्रांतिकारी पता नहीं उसके साथ क्या सलूक करें. इसलिए पहले उसने सैनिकों के साथ खुद को मकबरे के पास खंडहरों में छिपा लिया. फिर बादशाह को सरेंडर करने के लिए मजबूर किया. उन्हें कैदी बनाकर उसी किले में ले गए, जहां कभी बादशाह का आदेश चलता था. तारीख थी 20 सितंबर 1857. इसके साथ ही भारत पर अंग्रेजों का शासन पूरी तरह से कायम हो गया.
शहजादों ने 21 सितंबर को किया था समर्पण
बादशाह के सरेंडर के बावजूद उनके बेटे मिर्जा मुगल, मिर्जा सुल्तान और पोते अबू बकर हुमायूं के मकबरे में मौजूद थे. 21 सितंबर को उन्हें भी समर्पण के लिए मजबूर कर दिया गया. फिर आई 22 सितंबर. हडसन तीनों शहजादों को लेकर लाल किले के लिए निकला. तीनों को बताया गया कि उन पर लाल किले में मुकदमा चलेगा. अंग्रेज सैनिक तीनों शहजादों को लेकर हुमायूं के मकबरे से निकले तो पीछे-पीछे बड़ी संख्या में दिल्ली की जनता भी चलने लगी, जिसमें शहजादों की गिरफ्तारी से काफी गुस्सा था. हडसन भी इन लोगों के साथ ही चल रहा था.
कपड़े उतरवाकर लाइन में खड़ा किया और मार दीं गोलियां
अचानक हडसन ने खूनी दरवाजे पर तीनों शहजादों को रोक कर उनके कपड़े उतरवाए और लाइन में खड़ा कर गोलियां मार दीं. शवों को कोतवाली के सामने लटका दिया. इससे आहत मुगल बादशाह को बंदी बनाकर रंगून ले जाया गया. वहां उन्होंने सात नवंबर 1862 में एक बंदी के ही रूप में दम तोड़ दिया. उनको रंगून में श्वेडागोन पैगोडा के पास दफनाया गया था.