भारत में डायबिटीज की तरह ही फैटी लिवर की बीमारी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. फैटी लिवर दो तरह का होता है. एक है अल्कोहलिक फैटी लिवर ( शराब पीने वालों को होता है) और दूसरा है नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर जो शराब न पीने वालों को होता है. बीते कुछ सालों से नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर के मामले बढ़ रहे हैं. इसको देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस बीमारी को लेकर गाइडलाइन जारी की है. केंद्र ने सभी राज्यों को इसका पालन करने की हिदायत दी है.
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चन्द्रा ने कहा कि फैटी लिवर बीमारी को गैर संचारी बीमारी के राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल किया जा चुका है. गाइडलाइन के तहत नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर बीमारी के बारे डॉक्टर और फार्मा सभी को प्रशिक्षित करने का सुझाव दिया गया है. उन्होंने कहा कि देश में लिवर से संबंधित इस बीमारी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. ऐसे में इसको काबू करने की जरूरत है.
लोगों को जागरूक करना होगा
गाइडलाइन में कहा गया है कि आमतौर पर लिवर की बीमारी शराब पीने वालों से जोड़ कर देखा जाता है. लेकिन नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर इस समय बड़ी समस्या है. ये गाइडलाइन हाई रिस्क फैटी लिवर मरीजों के लिए फायदेमंद होगी. बैठक में वर्चुअल माध्यम से सभी राज्य जुड़े थे और उनसे आग्रह किया गया कि ये गाइडलाइन लागू करें . बैठक में फैटी लिवर की बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक करने की सलाह भी दी गई है. इस मौके पर स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि जो लोग शराब नहीं पीते वो भी फैटी लिवर से ग्रसित है. देश में नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर से 9 से 32 फीसदी लोग पीड़ित है. जो एक चिंता का विषय है. ये गाइडलाइन इस बीमारी को कंट्रोल करने में मदद करेगा. जीवनशैली को बदल कर नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर की बीमारी को काबू में किया जा सकता है.
क्यों होता है फैटी लिवर
खानपान की खराब आदतों की वजह से लिवर पर जरूरत से ज्यादा फैट जम जाता है. इसको ही फैटी लिवर कहते हैं. पहले फैटी लिवर की बीमारी शराब पीने वालों में ज्यादा देखी जाती थी, लेकिन अब जो लोग शराब नहीं पीते हैं उनको भी ये बीमारी हो रही है. इसका बड़ा कारण जंक फूड खाना और खराब लाइफस्टाइल है. बढ़ता मोटापा भी फैटी लिवर का एक बड़ा कारण है. भारत में नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर की बीमारी अब युवाओं में भी तेजी से बढ़ रही है. बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र ने संशोधित गाइडलाइन जारी की है.